November 22, 2024

उत्तराखंड सरकार की नाकामी, गर्मी में 16,843 गांवों में रहेगा पानी का संकट…………..

उत्तराखंड की 16,843 बसावटों को गर्मियों में गंभीर पेयजल संकट से गुजरना होगा। राज्य निर्माण के 19 साल हो चले हैं लेकिन इन बसावटों तक पानी नहीं पहुंचाया जा सका है। जबकि इस बीच आई तमाम सरकारें पेयजल सिस्टम को सुधारने के नाम पर 5,789 करोड़ रुपये से अधिक का बजट खर्च कर चुकी हैं। राज्य की कुल 39,311 बसावटों में से सिर्फ 22,453 बसावटों में ही 40 लीटर प्रति व्यक्ति के मानक अनुसार पेयजल मिलता है। शेष बसावटों में कहीं भी नई पेयजल योजनाओं से पानी नहीं पहुंच पाया है। लोग सिर्फ स्थानीय स्रोतों से ही जैसे-तैसे पेयजल की व्यवस्था करने को मजबूर हैं।

इन बसावटों तक पानी पहुंचाने को राज्य, केंद्र समेत वर्ल्ड बैंक से मिलने वाले बजट से 5,789 करोड़ से अधिक का पैसा खर्च हो चुका है। इसके बाद भी राज्य में पेयजल का संकट पूरी तरह दूर नहीं हो पाया है। प्रदेश में तीन सरकारों का कार्यकाल पूरा हो चुका है और चौथी के भी दो साल हो चुके हैं। इसके बाद भी इन 16 हजार से अधिक बसावटों में पर्याप्त पानी कैसे पहुंचेगा, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। उत्तराखंड में देहरादून, ऋषिकेश, विकासनगर, डोईवाला, गुलरभोज, शक्तिनगर, कपकोट, झबरेड़ा, हरिद्वार, सतपुली, कोटद्वार, जौंक, श्रीनगर, भीमताल, रामनगर, नैनीताल शहरों में ही पेयजल की स्थिति कुछ ठीक है। शेष शहरों में पानी की सप्लाई का सिस्टम दुरुस्त होना बाकी है।

75 शहरों में भी पानी की किल्लत
उत्तराखंड में पेयजल संकट सिर्फ गांव में ही नहीं है। राज्य में 75 शहरी क्षेत्र भी ऐसे हैं, जहां लोगों को मानकों के अनुसार पानी नहीं मिलता। उत्तराखंड के शहरों में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 135 लीटर के हिसाब से पानी सप्लाई होना चाहिए। इस मामले में सिर्फ 17 शहर ही ऐसे हैं, जिनमें पानी मानक के अनुरूप पहुंचाया जा रहा है।

उत्तराखंड की तस्वीर 

  • 39311 कुल बसावटें हैं राज्य में
  • 22453 बसावटों में पहुंच रहा पूरा पानी
  • 16843 बसावटों में आंशिक पानी
  • 17 शहरों में ही मानकानुसार पानी

यहां सबसे अधिक संकट
केदारनाथ, अगस्त्यमुनी, तिलवाड़ा, ऊखीमठ, नानकमत्ता, रुद्रपुर, जसपुर, बेरीनाग, गंगोलीहाट, गजा, लंबगांव, ढालवाला, मंगलौर, शिवालिकनगर, पिरान कलियर, भगवानपुर, पौड़ी, गंगोत्री, नौगांव, चिन्यालीसौड, पुरोला, बड़कोट, सेलाकुईं, चंपावत, बनबसा, लोहाघाट, टनकपुर, गैरसैंण, थराली, पोखरी, नंदप्रयाग, रानीखेत, भिकियासैण, अल्मोड़ा, द्वाराहाट, कालाढूंगी आदि।

वैकल्पिक इंतजाम के नाम पर खच्चर और टैंकर
गर्मियों में संकटग्रस्त क्षेत्रों तक पानी की सप्लाई पुराने वैकल्पिक इंतजामों के जरिए ही की जाएगी। पहाड़ी दुर्गम क्षेत्रों में खच्चर के जरिए और सड़क से सटे क्षेत्रों में टैंकर के जरिए पानी पहुंचाया जाएगा। हालांकि हर बार खच्चर और टैंकर के नाम पर होने वाले खर्च को लेकर सवाल उठते रहे हैं।

पांच वर्षों में बढ़ गया बस्तियों का संकट
उत्तराखंड में बीते पांच वर्षों में 3256 बसावटों तक पानी पहुंचाया गया। हालांकि चौंकाने वाली बात ये है कि इस अवधि में 6917 ऐसी बसावटें भी रही, जहां पहले पर्याप्त पानी था, लेकिन अब ये संकटग्रस्त क्षेत्रों की श्रेणी में आ गई हैं। इस आंकड़े ने सरकारी विभाग की कार्यशैली को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

उत्तराखंड में स्वजल प्रोजेक्ट के जरिए करीब आठ हजार बसावटों तक पानी पहुंचाया जा चुका है। शेष बसावटों तक पानी पहुंचाने के लिए केंद्र सरकार को दो हजार करोड़ रुपये का नया प्रस्ताव भेजा है। कुछ क्षेत्रों के लिए पेयजल योजना तैयार की गई, लेकिन कुछ समय बाद पेयजल स्रोतों में पानी कम हो गया। इसके चलते दिक्कत आई। ऐसे क्षेत्रों के लिए भी प्लानिंग कर रहे हैं।
भजन सिंह, एमडी, जल निगम