फेफड़ों का रखें ध्यान, दमा से ज्यादा खतरनाक है सीओपीडी
सीओपीडी यानी क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज। विश्व सीओपीडी दिवस हर साल नवंबर के तीसरे बुधवार को मनाया जाता है। हवा में प्रदूषण के बढ़ते स्तर के कारण जहरीले तत्व हमारे फेफड़ों और श्वास प्रणाली को नुकसान पहुंचा रहे हैं जिस वजह से लोगों में सीओपीडी के मामलों में इजाफा हो रहा है। विभिन्न अध्ययनों से पता चलता है कि जो हवा हम सांस के रूप में लेते हैं, वह बेहद जहरीली है। वास्तव में यह अनुमान लगाया गया है कि वैश्विक स्तर पर 2020 तक सीओपीडी दुनियाभर में होने वाली मौतों का तीसरा सबसे बड़ा और विकलांगता का पांचवा सबसे बड़ा कारण होगा।
शरीर में धीरे-धीरे पनपती है बीमारी
सीओपीडी होने पर मरीज को सांस लेने में तकलीफ होने लगती है। यह समस्या अचानक परेशान नहीं करती, बल्कि शरीर में धीरे-धीरे पनपती रहती है। ऐसे में मरीज को यह बीमारी कब हुई, इसका पता लगा पाना कठिन है। इसके लक्षण को समझने में भी काफी समय लग जाता है। आमतौर पर इसके लक्षण समय के साथ गंभीर होते चले जाते हैं और मरीज के दैनिक कार्यों को प्रभावित करने लगते हैं। यह रोग कुछ सालों में विकसित होता है। उपचार से यह लक्षण कम हो सकते हैं और रोग को बदतर होने से रोका जा सकता है।
धूम्रपान और प्रदूषण है बड़ा कारण
सीओपीडी रोग का सबसे बड़ा कारण धूम्रपान व प्रदूषण है। वहीं, जिन गांव-घरों में आज भी चूल्हे पर खाना पकता है, वहां की ज्यादातर महिलाएं सीओपीडी की शिकार हैं। सीओपीडी के लक्षण 35 साल की उम्र के बाद ही नजर आते हैं। इसकी इलाज प्रक्रिया लंबी है, ऐसे में मरीज चिकित्सक की सलाह के बिना दवा बंद न करें।