November 22, 2024

जमात की आतंकी गुटों से साठगांठ, ब्रेन वॉश कर बनाए जा रहे दहशतगर्द और उनके मददगार

 नई दिल्ली
 
जमात-ए-इस्लामी को आतंकी फंडिंग मामले में एनआईए के हाथ ठोस सबूत लगे हैं। जांच एजेंसी को मिली जानकारी के मुताबिक, जमात नकेल के बावजूद चैरिटी के नाम पर हासिल किए गए चंदे को लश्कर और हिजबुल जैसे आतंकी संगठनों तक पहुंचा रहा है। कट्टरपंथ के प्रसार के जरिए स्थानीय युवाओं का ब्रेनवॉश करने की कवायद भी चल रही है जिससे स्थानीय युवा आतंकियों के मददगार बन सकें या आतंकी संगठनों का दामन थाम लें। एनआईए लगातार इस मामले की छानबीन कर रही है। जमात पर शिकंजा कसने के लिए धरपकड़ भी जारी है।

अधिकारियों के मुताबिक, जमात चैरिटी के नाम पर मिले पैसे का अलगाववादी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल करता रहा है। सीमापार से मिले निर्देशों के मुताबिक अस्थिरता की योजना पर परदे के पीछे से काम किया जा रहा है। केंद्र सरकार ने वर्ष 2019 में जमात-ए-इस्लामी को प्रतिबंधित कर दिया था। एनआईए ने इसके खिलाफ अलग-अलग कई मामले दर्ज किए हैं। पांच फरवरी 2021 को दर्ज मामले में जमात की आतंकी फंडिंग सहित अन्य गतिविधियों का जिक्र था।

हिंसक और अलगाववादी गतिविधियों में फंड का इस्तेमाल
जमात के सदस्य देश-विदेश से दान और अन्य कल्याणकारी कामों के लिए फंड इकट्ठा कर रहे थे लेकिन कथित तौर पर इस धन का इस्तेमाल हिंसक और अलगाववादी गतिविधियों के लिए किया जा रहा था। एनआईए सूत्रों का कहना है कि यह संगठन जम्मू कश्मीर में अलगाववादी विचारधारा और आतंकवादी मानसिकता के प्रसार के लिए प्रमुख तौर पर जिम्मेदार माना जाता रहा है। अधिकारियों के मुताबिक, संगठन द्वारा जुटाई जा रही धनराशि जमात-ए-इस्लामी के सुव्यवस्थित नेटवर्क के माध्यम से हिजबुल मुजाहिदीन और लश्कर-ए-तैयबा जैसे प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों को भी पहुंचाई जा रही थी।

कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाने की मुहिम
साल 1941 में जमात-ए-इस्लामी संगठन बनाया गया था। जमात-ए-इस्लामी (जम्मू-कश्मीर) की कश्मीर में काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। वर्ष 1971 में इस संगठन ने चुनावी मैदान में दखल दिया। हालांकि, तब इसे एक भी सीट पर जीत नहीं मिली थी। जमात-ए-इस्लामी काफी लंबे समय से कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाने की मुहिम भी चला रहा है। सूत्रों ने बताया कि घाटी में कार्यरत कई आतंकी संगठन जमात के मदरसों और मस्जिदों में पनाह लेते रहे हैं। यह संगठन हिजबुल मुजाहिदीन का राजनीतिक चेहरा भी माना जाता रहा है। जमात-ए-इस्लामी जम्मू कश्मीर ने ही हिजबुल मुजाहिदीन को खड़ा किया और उसे हर तरह की मदद करता रहा है।

स्थानीय स्तर पर जमात को मिल रहे सहयोग की जांच
एनआईए सूत्रों का कहना है कि लगातार छापेमारी से कई अहम सुराग जांच एजेंसी को मिले हैं। आतंकियों के पनाह वाले स्थानों को चिन्हित कर कार्रवाई की जा रही है। लेकिन स्थानीय स्तर पर जमात को मिल रहा सहयोग जांच एजेंसी के लिए चुनौती है। जमात की गतिविधियां अभी भी जारी हैं। आतंकी और अक्गवावादी गुटों से इनका गठजोड़ भी अलग अलग तरीके से सामने आया है। सूत्रों का कहना है कि आतंकियों के मददगारों की बड़ी तादाद जमात से भी प्रेरित है और इनके संपर्क में रहती है।

 

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