इंडियन मुजाहिदीन के तीन साथियों को जमानत देने से इनकार, 2008 में सिलसिलेवार किए थे धमाके
नई दिल्ली
सितंबर 2008 के दिल्ली सिलसिलेवार विस्फोटों में संलिप्तता के लिए मुकदमे का सामना कर रहे तीन इंडियन मुजाहिदीन आतंकियों को जमानत देने से दिल्ली हाईकोर्ट ने इनकार कर दिया। मुबीन कादर शेख, साकिब निसार और मंसूर असगर पीरभॉय द्वारा दायर अपीलों को न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत व न्यायमूर्ति शलिंदर कौर की पीठ ने खारिज कर दिया। तीनों ने जमानत देने से इनकार करने के आदेश को चुनौती दी थी।
हालांकि, पीठ ने संबंधित निचली अदालत को सप्ताह में कम से कम दो बार सुनवाई करके मामले की सुनवाई पूरी करने का निर्देश दिया। अदालत ने नोट किया कि आरोपित वर्ष 2008 से सलाखों के पीछे हैं।
अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता के खिलाफ आरोप गंभीर हैं और उनके पास से विस्फोटों से संबंधित काफी सामान बरामद किया गया था। मुबीन कादर शेख के बारे में पीठ ने कहा कि वह एक योग्य कंप्यूटर इंजीनियर है और उस पर इंडियन मुजाहिदीन के मीडिया सेल का सक्रिय सदस्य होने का आरोप लगाया गया है। इतना ही नहीं उसने बड़ी साजिश के तहत संगठन को भेजे गए आतंकी मेल का पाठ और सामग्री तैयार की थी। ऐसे में वह जमानत पर रिहा होने का हकदार नहीं है।
पीरभाय को जमानत देने से इनकार करते हुए अदालत ने कहा कि वह पुणे में कार्यालयों वाली एक कंपनी में काम कर रहा था और उसका काम वेब प्राक्सी सर्वर और संबंधित ईमेल साफ्टवेयर विकसित करना था। इतना ही नहीं वह आतंकी संगठन के मीडिया समूह का नेतृत्व कर रहा था।
तीनों की जमानत याचिका खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि अभियोजक ने बताया कि शुरुआत में 497 गवाहों का हवाला दिया गया था। इनमें से 198 गवाहों को हटा दिया गया और 282 से अब तक पूछताछ की जा चुकी है। केवल 17 गवाहों से पूछताछ बाकी है। अदालत ने नोट किया कि विशेष अदालत प्रत्येक शनिवार को कार्यवाही कर रही है, ताकि मुकदमे को जल्दी से निष्कर्ष पर पहुंचाया जा सके।
13 सितंबर 2008 को दिल्ली में अलग-अलग जगहों करोल बाग, कनाट प्लेस और ग्रेटर कैलाश में सिलसिलेवार बम विस्फोट हुए था। अभियोजन पक्ष के अनुसार इन सिलसिलेवार विस्फोटों में 26 लोगों की मौत हो गई और 135 लोग घायल हुए थे। तीनों आरोपितों को वर्ष 2008 में अलग-अलग जगहों से गिरफ्तार किया गया था और तब से वे हिरासत में हैं।