जूनोटिक बीमारियों का साया, भारत बनता जा रहा है नया ‘हॉटस्पॉट’

नई दिल्ली
पिछले दो दशकों के आंकड़े उठाकर देखें तो पता चलता है कि दुनियाभर में कई प्रकार की संक्रामक बीमारियों के मामले तेजी से बढ़े हैं। इसके कारण न सिर्फ स्वास्थ्य व्यवस्थाओं पर अतिरिक्त दवाब बढ़ा है, बल्कि बड़ी संख्या में लोगों की मौतें भी हुई हैं। कोरानावायरस हो या मंकीपॉक्स, निपाह हो या इबोला, इन सभी ने इंसानी स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। पर क्या आपने कभी सोचा है कि कई बार ये बीमारियां अचानक कैसे फैल जाती हैं?
शोधकर्ताओं की मानें तो हाल के वर्षों में इंसानों में फैली ज्यादातर बड़ी बीमारियों की जड़ जानवरों से जुड़ी हुई है। इस तरह की बीमारियों का जूनोटिक बीमारियां कहा जाता है। इंसानों में देखी जा रही करीब 60% बीमारियां किसी न किसी रूप में जानवरों से आई हैं।
यानी अगर दुनिया में कोई नया वायरस या बैक्टीरिया फैलता है, तो बहुत संभावना है कि उसकी शुरुआत इंसानों से नहीं बल्कि जानवरों से हुई हो।
इस तरह के रोगों का खतरा और भी बढ़ता जा रहा है। इसी को लेकर हाल ही में हुए एक शोध में वैज्ञानिकों की टीम ने विश्वभर के लोगों को जूनोटिक बीमारियों के खतरे को लेकर सावधान किया है। वैज्ञानिकों ने कहा कि दुनिया की नौ फीसदी जमीन पर जूनोटिक संक्रमण का खतरा है, हर पांचवे इंसान को इस तरह की बीमारियों की चपेट में आने का खतरा हो सकता है। चूंकि इसके मामले तेजी से बढ़ते जा रहे हैं इसलिए सभी लोगों को अलर्ट रहने की आवश्यकता है।
दुनिया की लगभग तीन फीसदी आबादी गंभीर खतरे में
जर्नल साइंस एडवांसेज में प्रकाशित अध्ययन की इस रिपोर्ट में शोधकर्ताओं ने कहा, दुनिया की लगभग तीन फीसदी आबादी बेहद जोखिम वाले क्षेत्रों में रहती है। वहीं, हर पांच में से एक इंसान मध्यम जोखिम वाले क्षेत्रों में रह रहा है।
इटली स्थित यूरोपीय आयोग के संयुक्त अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में इन बीमारियों का बढ़ते जोखिमों को लेकर लोगों को अलर्ट रहने की सलाह दी है। शोधकर्ताओं ने वैश्विक संक्रामक रोग और महामारी विज्ञान नेटवर्क डाटासेट और विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्राथमिकता वाली बीमारियों की सूची का विश्लेषण किया। डब्ल्यूएचओ की प्राथमिकता सूची में कोविड- 19, इबोला, कोरोना वायरस, सार्स और निपाह जैसी बीमारियां सबसे खतरनाक और संक्रामक मानी गई हैं।
अध्ययन में सामने आई चौंकाने वाली बातें
अध्ययन में देखा गया कि बढ़ते तापमान, अधिक वर्षा और जल संकट जैसे जलवायु परिवर्तन के कारक इन बीमारियों के खतरे को और बढ़ा रहे हैं। वैज्ञानिकों ने पाया कि दुनिया की 6.3 फीसदी जमीन इन बीमारियों के उच्च और तीन फीसदी बेहद उच्च जोखिम में है। जानवरों से इंसानों में फैलने वाली बीमारियों का सबसे अधिक खतरा लैटिन अमेरिका (27%) में है।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के एक अध्ययन के मुताबिक, साल 2018 से 2023 के बीच भारत में दर्ज की गई 6,948 बीमारियों में से 583 (8.3%) जूनोटिक थीं। द लैंसेट रीजनल साउथईस्ट एशिया में प्रकाशित इस अध्ययन में लोगों को अलर्ट किया गया है।
कई जूनोटिक बीमारियां जैसे रेबीज, निपाह वायरस, बर्ड फ्लू, स्वाइन फ्लू, डेंगू, मलेरिया, लेप्टोस्पाइरोसिस और हाल के वर्षों में फैला कोरोनावायरस काफी आम है। इसका संक्रमण अक्सर गंभीर और जानलेवा साबित होता है, क्योंकि इंसानों की रोग प्रतिरोधक क्षमता उसके लिए तैयार नहीं होती।
क्यों बढ़ता जा रहा है खतरा?
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, वनों की कटाई और शहरीकरण के चलते इन बीमारियों के मामले बढ़ते जा रहे हैं। जब जंगल काटे जाते हैं, तो जंगली जानवर इंसानों के करीब आ जाते हैं और उनके शरीर में मौजूद वायरस हमारे शरीर तक पहुंच जाते हैं। दूसरा कारण है जलवायु परिवर्तन। बदलते मौसम के कारण मच्छर और अन्य कीड़े, जो कई रोग फैलाते हैं, नई जगहों पर पनपने लगते हैं।
इसके अलावा दुनिया की बढ़ती जनसंख्या और इसके हिसाब से स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी ने भी खतरे को पहले की तुलना में काफी बढ़ा दिया है।
भारत में जोखिम की स्थिति
कई अध्ययन इस बात को लेकर लोगों को सावधान कर रहे हैं कि भारत में जूनोटिक बीमारियों का जोखिम तेजी से बढ़ता जा रहा है। ये इन रोगों का हॉटस्पॉट बनता जा रहा है।
उत्तर-पूर्व भारत और दक्षिण भारत इन रोगों से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं, क्योंकि यहां जंगलों और इंसानी बस्तियों का सीधा संपर्क है और मानसून के कारण मच्छर तथा अन्य वाहक तेजी से फैलते हैं। निपाह से लेकर डेंगू और लेप्टोस्पाइरोसिस तक, भारत में इन बीमारियों की रफ्तार बढ़ रही है जिसको लेकर सभी लोगों को सतर्क रहने की जरूरत है। समय रहते जागरूकता और रोकथाम के उपाय करके आप इससे बचाव कर सकते हैं।