September 21, 2024

खजुराहो की दीवारें दे रही गवाही, समलैंगिक विवाह की मान्यता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में तर्क

नईदिल्ली

समलैंगिक विवाह पर सुप्रीम कोर्ट में दूसरे दिन भी सुनवाई जारी है. केंद्र सरकार के विरोध के बीच Same Sex Marriage के पक्ष में दलीलें देते हुए सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने जमकर दलीलें पेश की हैं. शीर्ष अदालत में हालांकि अभी सुनवाई जारी है. मुकुल रोहतगी ने खजुराहो की दीवारों पर उकेरी गई कलाकृतियों से लेकर इतिहास की किताबों में दर्ज तथ्यों को अदालत के सामने पेश किया. सुनवाई के दौरान  पक्ष और विपक्ष दोनों ने ही खूब तर्क रखे।

सरकार इस तरह के विवाह के विरोध में है। वहीं याचिकाकर्ताओं के पक्ष से वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि संविधान भी कहता है कि सभी को समानता का अधिकार है। ऐसे में प्यार को शादी में बदलने का अधिकार सबको मिलना चाहिए।

उन्होंने कहा, दूसरी तरफ से कहा जा रहा है कि पुरुष और महिला के मिलन से ही जन्म हो सकता है। यह प्रकृति का नियम है। वे कहते हैं कि समलैंगिक नॉर्मल नहीं हैं। लेकिन क्या वही नॉर्मल होता है जो कि बहुसंख्यक होता है। कानून यह नहीं कहता बल्कि यह केवल एक सोच है। उन्होंने कहा कि इस तरह की सोच का जन्म 18वीं शताब्दी में हुआ लेकिन अगर भारतीय ग्रंथों और रचनाओं पर गौर करें तो सैकड़ों साल पहले दीवारों पर चित्र उकेर दिए गए थे जिसमें समैलिंगकता को दिखाया गया था। इसका मतलब है कि हमारी परंपरा में हमारी सोच बहुत आगे थी। यह रूढ़िवादी नहीं हुआ करती थी।

रोहतगी ने खजुराहो की कला का उदाहरण देते हुए कहा कि पॉपुलर मोरालिटी और संवैधानिक मोरालिटी  के बीच में यही फर्क है। अगर किसी बात को कोर्ट सही ठहराता है तो संवैधानिक नैतिकता ही आदत में शुमार हो जाएगी। वहीं जज एस रविंदर भट्ट ने रोहतगी से कहा, आप एक तर्क में महिला और पुरुष में भेद की बात कर  रहे हैं और एक तर्क में जेंडर न्यूट्रल बना रहे हैं। आखिर आप चाहते क्या हैं? क्या आप ऐसी ही बातों को रख रहे हैं जो कि आपको सूट करती हैं।

रोहतगी के बाद अभिषेक मनुसिंघवी ने याचिकाकर्ताओं की तरफ से तर्क देना शुरू किया। उन्होंने कहा कि यहां मुद्दा चुनने के अधिकार का है। इसका रास्ता वैवाहिक संबंध से होकर जाता है। पहचान की परवाह किए बिना प्यार को शादी में बदलने की मांग हो रही है। उन्होंने कहा, अगर समलैंगिक विवाह को मान्यता मिलती है तो यह बहुत बड़ी जीत होगी।

अब तक हुई सुनवाई के मुख्य प्वाइंट…

  •     सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ समलैंगिक विवाह मामले की सुनवाई कर रही है. याचिकाकर्ताओं की ओर से मुकुल रोहतगी अपना पक्ष रख रहे हैं और सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता दलील रख रहे हैं. 18 अप्रैल को पहली बार मामले की सुनवाई हुई.
  •     सरकार ने आज नया हलफनामा पेश किया है. इसमें कहा गया है कि केंद्र राज्यों से सलाह कर रही है. उन्होंने कहा कि ये सामाजिक मामला है. संसद में इसको लेकर चर्चा होनी चाहिए और जो भी निर्णय हो वहीं पर होना चाहिए.
  •     याचिकाकर्ताओं की ओर से मुकुल रोहतगी ने कहा कि समाज का ही एक तबका दशकों से लांछन झेल रहा है. उसको इससे छुटकारा दिलाइये. स्पेशल मैरिज एक्ट में उनको स्थान दीजिए, इससे उनको पहचान मिलेगी. वो खुलकर जिंदगी जी पाएंगे.
  •     सरकार की ओर एसजी टी मेहता ने अधिकारों की बात रखी थी. आसान भाषा में समझने की कोशिश करते हैं दरअसल, जहां पर पति-पत्नी का कॉलम आता है वहां पर लड़के और लड़की का नाम लिखा जाता है. लेकिन समलैंगिक विवाह में ऐसा नहीं हो सकता. मुकल रोहतगी ने कहा कि पति और पत्नी की जगह जीवनसाथी शब्द का प्रयोग कीजिए.
  •     रोहतगी की बात खत्म करने के बाद सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि ये मुद्दा राज्यों का है. इसमें स्टेट को पार्टी बनाया जाना चाहिए. केंद्र ने कहा कि स्टेट से बातचीत चल रही है.कोर्ट की संविधान पीठ इसका सुनवाई कर रही है.
  •     मुकुल रोहतगी ने अपनी दलील में गुजारे भत्ते का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा कि लंबा समय बीत चुका है और आज के समय में यह कहना सही नहीं होगा कि सिर्फ पति ही पत्नी को गुजारा भत्ता देगा. हिंदू मैरिज एक्ट में साफ है कि अगर पत्नी ज्यादा कमा रही है तो वह भुगतान करेगी. स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत गुजारे भत्ते की बात असंवैधानिक है.
  •     सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने पीठ से आश्चर्य जताते हुए कहा कि सरकार इसके लिए क्यों तैयार नहीं है. क्या वो लोग सिर्फ पुराने दौर की शादियां चाहते हैं. अगर ऐसा हो तो फिर जो इंटर कास्ट मैरिज और दूसरे धर्म में शादियों के बारे में इनका क्या ख्याल है

 

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